My reflection/reaction/state on Andhra Pradesh CM YSR’s sudden demise and the state holiday following that.
थोडा वक्त तो हो ही गया,
इस नये शहर में आए हुए ।
यहाँ अक्सर वक्त कटता है ऑफ़िस में,
या घर पर खाते या सोते हुए ।
यहाँ रश ज्यादा रहता है,
जिन्दगी थोडी तेज़ चलती है ।
इस रश और शोर-शराबे में ही,
जिन्दगी अब पूरी सी लगती है ।
आदत सी पड गयी थी मुझे,
यूँ ही ऐसे ही जीने की,
मन मारकर बडी मुश्किलों से,
दबा दी थीं हसरतें सीने की ।
लेकिन आज कुछ अधूरापन सा है,
अकेलापन फिर महसूस हुआ ।
हर तरफ सन्नाटा सा है,
ना कोई बहस ना ही दुआ ।
निकल पडा मैं सडक पर,
कि बहला दूँ अपने मन को ।
देखकर बाहर की दुनिया,
दूर कर दूँ इस अकेलेपन को ।
पर आज बाहर भी कोई नहीं,
अब ये दर्द-ए-दिल किससे कहें ?
क्यों YSR क्यों,
आखिर क्यों तुम नहीं रहे ??
नमस्ते,
पियूष
PS: I am not a YSR fan and all but its just this current state that caused all these feelings and this poem 🙂