अष्ट कर्म, त्यागेंगे हम !

Wrote this poem for kids of Jain Pathshala in US to help them learn about Karm.

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हमको सिखाता है ये जैन धरम,
सुखी होना है तो छोडो आठों करम ।
कर्म हमें भटकाते हैं संसार में,
जन्म-मरण के चक्कर असार में ।

 

पहला करम कहलाता ज्ञानावर्णी,
दूसरा करम कहलाता दर्शनावर्णी।
पहला ज्ञान, दूसरा दर्शन को ढके,
ऐसे कर्मों को क्यों और हम रखें।

 

मोहनीय है भैया तीसरा करम,
पर में अपनेपन का कराता भरम।
चौथा करम कहलाता अंतराय,
सुखी होने में ये बाधा लाये।

 

आयु है भैया पाँचवा करम,
बताता कितना कहाँ जियेंगे हम।
छटवा करम कहलाता नाम,
शरीर की रचना इसका काम ।

 

गोत्र है भैया सातवा करम,
उच्च-नीच गोत्र देना कार्य परम ।
आठवा करम कहलाता वेदनीय,
सुखी करता कभी करता दयनीय।

 

पहले चार हैं घातिया करम,
स्वाभाव का घात करने में सक्षम।
अगले चार कहलाते अघातिया,
देते शरीर, संयोग और साथिया

 

घातिया कर्मों का करके अंत,
बन जाऊँ शीघ्र मैं अरिहंत ।
आठों कर्मों का करके नाश,
बन जाऊं सिद्ध शुद्धात्म प्रकाश ।

जय जिनेन्द्र !
पियूष

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