एक लघु विषय पर दीर्घ वाद,
हल कर सकता था जिसे संवाद ।
पर था अभिमान दोनों और,
थोडी बात बडी, हुआ शंखनाद ॥
तू गलत गलत, मैं सही सही,
यूं बढने लगी कुछ कहा कही ।
मन इसका दुखी, मन उसका दुखी,
पर झुकने कोई तैयार नहीं ॥
कुछ तर्क हुआ, कुछ वितर्क हुआ,
प्यारा सा गृह यूं नर्क हुआ ।
ये भी अडियल, वो भी अडियल,
दोनों का बेडा गर्क हुआ ॥
जब हुई रात, मन शांत हुआ,
फ़िर किये पर पश्चाताप हुआ ।
हुआ ऐसा क्यूं, किया वैसा क्यूं,
रह रहकर यूं संताप हुआ ॥
फ़िर सुबह हुई, मन शांत हुआ,
अपनी गलती पर खेद हुआ ।
तब चैन मिला, मिली थोडी खुशी,
मतभेद, नहीं मनभेद, हुआ ।।
पियूष !!